बहुत याद हम आयेंगे ...
माना की ,हमें दुश्मन वो समझते हैं
हमारे प्यार को भी नफ़रत से देखते हैं
पर हम , उनकी चर्चा प्यार में रखते हैं
सबको मालूम है हमारी वफ़ा
पर वो हमें बेवफा की नजर से देखा करते हैं
सच तो ये है वो वफ़ा करके भी तड़पाते है
अहसास नहीं होती उनकी बेवफाई
उनकी कम बन जाये तो ठीक
सच ,कहीं कोई कह दे
तो नाराज हो जाते हैं
बेवफाई की चादर ओढ़े वो
हमारी मज़बूरी पर हँसते है
हम हैं की " साहिल "
गम की घूंट पीकर भी
उन्हें देख प्यार से मुस्कुराते हैं
इस बात से अंजान भी नहीं हैं
पर उनकी आदत सी हो गई है
उनकी हंसी में भी नफरत झलकती है
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
माना की ,हमें दुश्मन वो समझते हैं
हमारे प्यार को भी नफ़रत से देखते हैं
पर हम , उनकी चर्चा प्यार में रखते हैं
सबको मालूम है हमारी वफ़ा
पर वो हमें बेवफा की नजर से देखा करते हैं
सच तो ये है वो वफ़ा करके भी तड़पाते है
अहसास नहीं होती उनकी बेवफाई
उनकी कम बन जाये तो ठीक
सच ,कहीं कोई कह दे
तो नाराज हो जाते हैं
बेवफाई की चादर ओढ़े वो
हमारी मज़बूरी पर हँसते है
हम हैं की " साहिल "
गम की घूंट पीकर भी
उन्हें देख प्यार से मुस्कुराते हैं
इस बात से अंजान भी नहीं हैं
पर उनकी आदत सी हो गई है
उनकी हंसी में भी नफरत झलकती है
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
एक अलग सोच से लिखी गई कविता हमें विचारने के लुछ संकेत अवश्य देती है।
जवाब देंहटाएंसंजय भाई हार्दिक आभार ... कोसीर ... ग्रामीण मित्र ! में आपका स्वागत है ,बरसो से आप लोंगो का इंतजार था मेरे भी ब्लॉग का अनुशरण कर उत्साहित करें ...
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