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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

बसंत पंचमी को भैया बहनों ने दी रंगारंग प्रस्तुति ...


कोसीर सरस्वती शिशु मन्दिर हाई स्कूल में बसंत पंचमी हर्षोल्लास से मना 
0 बसंत पंचमी को भैया बहनों ने दी रंगारंग प्रस्तुति 
0 मातृ सम्मेलन सम्पन्न 
कोसीर - बसंत पंचमी पर्व पर कोसीर के मां कौशलेश्वरी ज्ञानोदय विद्या मंदिर , सरस्वती शिशु मंदिर ,बेडिहार पारा स्कूल ,शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कोसीर ,कन्या हाई स्कूल कोसीर ,वैदिक विद्या मंदिर कोसीर ,दीपकृति माडर्न स्कूल व मुंगहापारा स्कूल में मां सरस्वती की पूजा अर्चना की कार्यक्रम रखा गया था। सुबह स्कूलों में विद्या की देवी की विद्यार्थीयों ने आराधना की और सद्बुद्धि के लिये मां सरस्वती की तैल चित्र पर दीप-धूप प्रज्वलित कर आशिर्वाद लिये।
सरस्वती शिशु मंदिर ने बसंत पंचमी पर्व के अवसर पर मातृ सम्मेलन का आयोजन किया गया और साथ ही साथ बसंत पंचमी को भैया बहनों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत की गई। सांस्कृतिक कार्यक्रम लगभग 10बजे शुरू हुई जिसके मुख्य अतिथि के रूप में संस्था के व्यवस्थापक कमल कृष्ण श्रीवास रहे वहीं संस्था के प्राचार्य बेदराम रत्नाकर उत्तरा कुमार कुर्रे,और युवा साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे की उपस्थिति में कार्यक्रम शुरू हुई। सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुल 37 कार्यक्रम शामिल किया गया था जिसमें गीत ,कविता ,नृत्य नाटक को शामिल किया गया था। कार्यक्रम के संचालन उत्तरा कुमार भारद्वाज ने कार्यक्रम को आगे बढाते हुये मुख्य अतिथि की स्वागत कराकर कार्यक्रम को गति दिये। सर्वप्रथम कक्षा नवम् की बहन कुमारी भगवती व साथियों द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। इस तरह धीरे धीरे कार्यक्रम बढती गयी और स्कूल के भैया बहनों ने रंगारंग प्रस्तुति दी जिसमें कुमारी राधा साहू व साथी ,कुमारी दिव्या ,नामिनी ,कृष्णकुमार ,शैली ,कविता ,कमलेश,सभी भैया बहनों ने एक से बढकर एक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जिसमें नाटक का खूब आनंद उठाया गया वहीं सुवा नृत्य ,डांडिया ,भक्ति गीत ,राष्ट्रीय गीत से ओत प्रोत रही अंत में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कमलकृष्ण श्रीवास ने संबोधन किया। इस कार्यक्रम में सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य गण दीदी जी भैया बहन एवं गांव के सैकडों लोग उपस्थित रहे और सांस्कृतिक कार्यक्रम की आनंद लिये।  


अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति ...



अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति
अबुझमाड़ से लौटकर - युवा साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे
 अबुझमाड़ के ओरछा से बीजापुर तक 16पत्रकारों की दल पदयात्रा कर सकुशल वापस आ गये अबुझमाड में पत्रकारों ने जगह जगह जनताना सरकार से मिलने की कोशिश की पर जनताना सरकार के करिंदे पत्रकारों से मिलने से  बचते रहे और अबुझमाड़ में पत्रकारों के लिये रास्ते खोलकर बचते रहे।
                                                दक्षिण बस्तर में एक वर्ष में दो पत्रकारों की निर्मम हत्या से दक्षिण बस्तर के पत्रकार चिंतित और स्तब्ध हैं। अपने अभिव्यक्ति और मिडिया की स्वतंत्रता पर आंच आते देख नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति के लिये निकल पडे हैं। पत्रकार नेमिचंद जैन और सांई रेड्डी की निर्मम हत्या नक्सलियों ने करके पत्रकारों को उलझाने की कोशिश में लगे हैं। दक्षिण बस्तर में जो पत्रकार जंगल के अंदर से खबर लाकर समाज के सामने रख रहे थे अब उन्हें डर लग रहा है और डर लगना स्वाभाविक भी है। आखिर नक्सलियों पर कैसे विश्वास किया जाये ? एक वर्ष में दो पत्रकारों की हत्या कर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं ? ये बात समझ से परे है। बस्तर का अबुझमाड़ 50 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है जहां दूर-दूर तक संचार की कोई सुविधा नहीं है जहां जनताना सरकार की तूती बोलती है और गणतंत्र की गण का कोई महत्व नहीं। सरकार अबुझमाड़ में पंगु नजर आती है। अबुझमाड़ को भगवान भरोषे छोड़ दिया गया है जहां विकास की बात करना गलत है। आजादी के 6 दशक बीता जाने के बाद भी अबुझमाड़ जस का तस पडा है। अबुझमाड़ को सरकार जनताना सरकार को सौंप दी है कहना गलत नहीं होगा।
                                    26जनवरी 1950 को भारत का संविधान बना और उसी की याद में हर वर्ष 26 जनवरी को तिरंगे झंडे को फहराकर गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। संविधान में हर नागरिक के कर्तव्य और मौलिक अधिकार हैं पर अबुझमाड़ में गणतंत्र का कोई मतलब ही नहीं है आज भी आजादी के 6दशक बीत जाने के बाद अबुझमाड़ के आदिवासियों को उनके कर्तव्य और अधिकार नहीं मिल पाया। बेबसी भरी जीवन जीने को मजबूर हैं। इस बात को आप झुठलाना चाहते है तो पहले आप को अबुझमाड़ आना होगा और देखना होगा कि क्या वाकई आजादी मिली है या नहीं। 26 जनवरी को एक ओर जगह जगह जनप्रतिनिधि और नेता शान से झंडा फहरा रहे थे तो दूसरी ओर अबुझमाड़ के ओरछा जहां जनताना सरकार की मिल्कियत है। ओरछा नाले के उस पार जनताना सरकार की राज चलती है और पत्रकार धीरे-धीरे इकट्ठा हो रहे थे जनताना सरकार के विरोध में। 26 जनवरी से 30 जनवरी तक ओरछा से बीजापुर मिडिया स्वतंत्रता पदयात्रा के लिये निकल पडी थी और गढ़बेंगाल के पास पत्रकार चैपाल लगाकर बैठ गये थे। वहीं से शाम को ओरछा पहुॅचे। मिडिया स्वतंत्रता पदयात्रा के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ल और वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंक तथा हरी सिंह सिदार अपने अनुभवों को बांट रहे थे वहीं समाज सुधारक हरिसिंह सिदार ने सार्वजनिक बात रखते हुये बोले-अबुझमाड़ आने से पहले बहू ने खूब स्वागत किया और 5दिन की खर्चा भी मिल गई। पहला पडा़व ओरछा था जिसमें मिडिया स्वतंत्रता पदयात्रा के संयोजक कमल शुक्ल वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ,  हरिसिंह सिदार ,युवा पत्रकार संजय शेखर ,रोहित श्रीवास्तव ,प्रदीप कुमार ,नितीन सिन्हा ,सर्वेस कुमार मिश्रा ,लक्ष्मण चंद्रा बसंत कुमार सिन्हा बप्पी राय प्रभात सिंह सुभाष विश्वकर्मा मनोज ध्रुव हरजीत सिंह पप्पू रोहित , मंगल कुंजाम ,अब्दुल हामिद , नीलकमल वैष्णव , अशोक गबेल इस तरह 20 से 22 पत्रकार ओरछा में रात गुजारी और कुल 16 पत्रकारों ने ओरछा के लिये सहमति दी और सुबह पदयात्रा शुरू किये जिसमें कमल शुक्ल,गिरीश पंकज , हरिसिंह सिदार ,युवा पत्रकार संजय शेखर ,रोहित श्रीवास्तव ,प्रदीप कुमार, सर्वेस कुमार मिश्रा ,रंजन दास , बप्पी राय ,अशोक गबेल ,मंगल कुंजाम ,मनोज , सुभाष सिंह ,अब्दुल हामिद ,प्रभात सिंह , की दल निकल पडी और लंबी पदयात्रा के बाद बडे़ टोंडाबेड़ा ,आदेर ,ढोडरबेडा ,कुडमेल ,मुरूमवाडा, लंका, बेदरे बीहड़ जंगलों से होते हुये 100 किमी लंबी पदयात्रा तय कर गांधी जी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को बीजापुर पहुॅची जहां पत्रकारों की सम्मान किया गया। इस 5 दिन की पदयात्रा में जनताना सरकार के करिंदों से कई बार संवाद के लिये कोशिश हुआ पर दो पत्रकारों की हत्या के विषय में उनके पास कोई उत्तर नहीं था शायद इसलिये नहीं मिले वहीं इस पदयात्रा में पत्रकारों की दल में अबुझमाड़ में मुरूमवाडा़ से लंका के रास्ते में रासमेटा गांव के जंगल में ब्रम्हरास सरोंवर की खोज की जो बहुत सुन्दर जलप्रपात है। पदयात्रा का मुख्य मकसद नक्सलियों से संवाद कायम कर मिडिया की स्वतंत्रता पर चर्चा करना था पर नक्सली नहीं मिले। आज भी अबुझमाड़ के ग्रामीण विकास से कोसों दूर है जहां जनताना सरकार की हुकूमत है। अबुझमाड में बसे आदिवासी शिक्षा ,स्वास्थ्य , सड़क , बिजली ,पानी ,संचार ,यातायात जैसे मूलभूत सुविधाओं से आज भी कोसों दूर नजर आते हैं। सरकार की योजनायें यहां नहीं दिखती है। ओरछा ही एक ऐसा बाजार है जहां पहुॅचने के लिये ग्रामीणों को 80 किमी दूर जंगल के रास्ते से तय कर जाना पड़ता है और पहुॅच जाते हैं तो रात को ओरछा में ही ठहरना पड़ता है। इस प्रकार अबुझमाड में आदिवासी सरकार और जनताना सरकार के बीच पिस रहे हैं।उन्हें भी उजाला की शौंक है पर सूरज की रोशनी के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं आखिर कब अबुझमाड के रहवासियों को जनताना सरकार से आजादी और सरकार की योजनाओं को लाभ मिल पायेगा।

            0 लक्ष्मी नारायण लहरे -युवा साहित्यकार पत्रकार कोसीर सारंगढ http://kosirgraminmitra.blogspot.in/


गुरुवार, 9 जनवरी 2014

कोसीर को विकासखण्ड की मांग को लेकर ग्रामीण हुये लामबंद ...



                         कोसीर को विकासखण्ड की मांग को लेकर ग्रामीण हुये लामबंद
0 आज 9 जनवरी को जिला कलेक्टर से मिलकर रखेंगे अपनी बात
0 11जनवरी को कोसीर में ग्रामीण करेंगे धरना प्रदर्शन
0 सारंगढ एस डी एम, तहसीलदार से किये विकासखण्ड की मांग
० लक्ष्मी नारायण लहरे 
कोसीर - कोसीर अंचल के ग्रामीणों को विकासखण्ड की महत्व का एहसास हो गया है और कोसीर को विकासखण्ड की मांग को लेकर ग्रामीण सक्रीय के साथ साथ लामबंद हो गये हैं। कोसीर को विकासखण्ड की मांग को लेकर सुबह शाम गांव में बैठकें हो रही है।विकासखण्ड की मांग को लेकर एक सूत्रीय कार्यक्रम बनाकर आगे बढने की ठान लिये हैं।विगत दिवस 7जनवरी को कोसीर अंचल के ग्रामीण सारंगढ पहुॅचे और सारंगढ एस डी एम ,तहसीलदार से मिले मिलकर आवेदन करते हुये कोसीर को विकासखण्ड की मांग की बात रखे और बोले कोसीर विकासखण्ड बनने के योग्य है इस विषय पर विचार करने योग्य है। कोसीर विकासखण्ड न बनने से लम्बे समय से विकास से कोसों दूर रहा है बनने पर क्षेत्र का विकास होगा।यही नहीं 8 जनवरी को सारंगढ एस डी एम को आवेदन देकर अवगत कराया गया है जिसमें 11जनवरी को धरना प्रदर्शन की बात कही गयी है इस तरह विकासखण्ड की मांग को लेकर अंचलवासी पूरी तरह कमर कस लिये हैं। 8जनवरी को कोसीर के ऐतिहासिक मां कौशलेश्वरी देेवी मंदिर प्रांगण में एक बैठक आयोजित किया गया जिसमें हर वर्ग के लोग शामिल हुये और बैठक में सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया कि कोसीर को विकासखण्ड बनाने के लिये जिला कलेक्टर से भी मिलना चाहिये और आज 9 जनवरी को सैकडों ग्रामीण जिला कलेक्टर से मिलने रायगढ जायेंगे मिलकर कोसीर को विकासखण्ड बनाने की मांग रखेंगे।बैठक में गांव के गणमान्य जन और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि के साथ साथ कोसीर गांव के आम लोग भी शामिल हुये।जिसमें लखनलाल चन्द्रा ,बिल्ठीराम आदित्य कार्तिक राम पटेल क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि जनपद सदस्य डां एम आर खरे ,छेदू राम साहू ,किसान मोर्चा मण्डल अध्यक्ष सहदेव प्रसाद सुमन क्षेत्रीय नेता भगतराम बंजारे , मण्डल कोषाध्यक्ष कमलकृष्ण श्रीवास मंडी सदस्य कौशल प्रसाद चन्द्रा पूर्व सरपंच किरीतराम खुॅटे, खीकराम जायसवाल ,तथा जेठूराम,रामाधार कुर्रे मिट्ठूलाल अग्र्रवाल ,विष्णू चन्द्रा ,लाभोराम लहरे ,सेवक पटाइल ,दाउराम चन्द्रा,बसंत सुमन,प्रेमचंद लहरे ,पिताम्बर सुमन उपस्थित रहे।

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कोसीर को विकासखण्ड बनाने की मांग की मुहिम तेज ग्रामीण हुये सक्रीय ..


कोसीर को विकासखण्ड बनाने की मांग की मुहिम तेज ग्रामीण हुये सक्रीय
            0 रायपुर में मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात रखे ग्रामीण
            0 राजनैतिक शिकार होने की चिंता अब सता रही
      रायपुर से लौटकर _ लक्ष्मी नारायण लहरे 

कोसीर - ग्राम कोसीर रायगढ जिले का सबसे बडा गंाव है वर्तमान में जनसंख्या की दृष्टि से लगभग दस हजार की जनसंख्या है। लंबे समय से ग्राम कोसीर को विकासखण्ड बनाने की मांग होती रही है और इस ओर लगभग विकासखण्ड बनना तय भी था। सारंगढ तहसील से कोसीर की दूरी लगभग 16 किमी है। कोसीर थाना अंतर्गत 52 गांव आते हैं वहीं कोसीर  महिला बाल विकास परियोजना के अन्तर्गत 6 सेक्टर हैं जिसमें कोसीर ,केडार ,छिन्द, जशपुर ,उलखर ,भेडवन ,आते हैं यही नहीं कोसीर इतिहास की दृष्टि से पुरातात्विक नगरी है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रायगढ के पत्र क्रमांक 12458सत्र 2012-13के अनुसार कोसीर को नया विकासखण्ड बनाने के संबंध में 10अप्रैल 2013 को जनपद पंचायत सारंगढ में दावा आपत्ति थी जिसमें कुछेक ग्रंाम के लोग आपत्ति प्रस्तुत किये थे कोसीर को नये विकासखण्ड बनाने के लिये 35 ग्रामपंचायतों को लेकर बनना था जिसमें कोसीर पासीद ,मल्दा अ, दहीदा ,अण्डोला ,जशपुर ,सिंघनपुर ,कुम्हारी ,कपिस्दा अ,बरदूला ,तिलाईदादर ,गंतुली बडे ,गंतुली छोटे ,बटाउपाली अ, मुडवाभाठा ,उच्चभिट्ठी ,रीवांपार ,मुडपार बडे,चांटीपाली ,लेन्ध्रा ,भद्रा ,परसदा बडे,परसकोल, कलमी ,साल्हे ,छुहीपाली ,सुलोनी ,उलखर ,कुर्राहा,खैरा छोटे ,डडाईडीह ,भेडवन ,भोथली ,घोठला छोटे , जसरा , शामिल था ।अगस्त 2013 में बिलासपुर में दावा आपत्ति हुये और कोसीर विकासखण्ड बनने की प्रकृया फिर बोतल में बंद हो गयी।कुछ दिन पहले तथाकथित एक साप्ताहिक अखबार में खबर छपी कोसीर का नाम कटा उलखर नया विकासखण्ड बनेगा तब कोसीर अंचल के ग्रामीणों के कान खडें हो गये और कोसीर को विकासखण्ड बनाने की मांग की मुहिम तेज हो गई। विगत दिवस 5जनवरी को कोसीर अंचल के आम लोग 50 से अधिक की तादाद में रायपुर पहुॅचे और रायगढ लोकसभा क्षेत्र के सांसद विष्णुदेव साय से मिले और अवगत कराये तथा राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे से मिलकर आवेदन दिये। भाजपा के जिलाध्यक्ष राजेश शर्मा और सारंगढ पूर्वी मंडल के मंडलअध्यक्ष टीकाराम पटेल जिलापंचायत सदस्य श्रीमति नंदनी वर्मा और पश्चिम मण्डल के भाजपा के किसान मोर्चा के मण्डल अध्यक्ष सहदेव प्रसाद सुमन जनपद सदस्य महेत्तर खरे एवं भरत जाटवर गनपत जांगडे ,कमल वैद , विष्णु चन्द्रा  ,अरविंद खटकर ,अनेक भाजपाई और ग्रंामीण छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डां रमन सिंह से उनके मुख्यमंत्री निवास में मुलाकात किये। कोसीर को ब्लाक बनाने की मांग को रखे वहीं भाजपा जिलाध्यक्ष राजेश शर्मा के मार्गदर्शन में मुलाकात हुई और राजेश शर्मा ने मुख्यमंत्री को अवगत कराया कि कोसीर रायगढ जिले का सबसे बडा गांव है ब्लाक के योग्य है और ग्रामीण वापस लौट आये। दूसरी ओर उलखर को नया विकासखण्ड बनाने की खबर से ग्रामीण परेशान हैं कि कोसीर योग्य होते हुये भी नहीं बन पा रही है और ग्रामीण अंचल के लोगों को राजनैतिक चिंता सता रही है कहीं कोसीर उपेक्षित ना हो जाये। विशेष जानकारी अनुसार विधानसभा चुनाव के बाद दिसंबर के अंतिम दिनों में एक आवेदन जिला कलेक्टर और भू अभिलेख शाखा रायगढ तथा मंत्रालय को सारंगढ राजस्व अधिकारी द्वारा उलखर को नया विकासखण्ड चिन्हांकित कर भेजा गया है जिसकी दावा आपत्ति 25 जनवरी को लगभग रायगढ में होना है। इस तरह कोसीर फिर से उपेक्षित नजर दिख्,ााई दे रही है जिससे अंचल के लोगों को चिंता सता रही है कहीं राजनैतिक का शिकार तो नहीं हो रहा है कोसीर। लोगों में कानाफूसी हो रही है कि अब उलखर नया विकासखण्ड होगा। कोसीर योग्य होकर भी उपेक्षित दिखलाई पड रहा है जिससे आम लोगों में आक्रोश भी दिख रहा है और आनेवाले समय में आम लोगों की गुस्सा कभी भी जनांदोलन के रूप में फूट गया जो अचरज की बात नहीं।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

कोसीर गांव का चर्चित रउताही मडाई मेला ...

दैनिक भास्कर की कतरन -आज कोसीर में मेला 
दैनिक अखाबार नव प्रदेश रायपुर में प्रकाशित 
दैनिक अखबार कुशाग्रता रायगढ़ 
साप्ताहिक अखबार -प्रखर आवाज सारंगढ़ 




कोसीर गांव का चर्चित रउताही  मडाई मेला
0 युवा वर्ग दुर हो रहे पारंपारिक राउत नाच से
0 कोसीर में आज   03 जनवरी से 05 जनवरी तक मेला का आयोजन


कोसीर(रायगढ़ ) - छत्तीसगढ की संस्कृति में पूर्वजों की रिती ,निती ,रिवाज आज भी देखने को मिलती है । छत्तीसगढ की संस्कृति में भिन्न भिन्न समुदाय के लोग निवासरत हैं और अपनी-अपनी समुदाय की अलग अलग रीति नीति रिवाज हैं। हर वर्ग की एक अलग पहचान है।विभीन्न समुदाय होने के बाद भी तीज त्यौहार पर्व उत्सव को मिलजुलकर मनाने की परंपरा विद्यमान है। एक दूसरे के सुख दुख आपस में बांटकर समाज में एकरूपता का परिचय देते आ रहे हैं। छत्तीसगढ में अलग-अलग समुदाय के अलग अलग पारंपरिक नृत्य हैं जैसे -अदिवासियों का सरहुल ,मारियों का ककसारपरजा का परब ,उरांवों का डोमकच ,बैगा और गोडों का कर्मा ,डंडा ,सुवा ,लोकनृत्य हैं।यदुवंशियों का रावत नृत्य सतनामियों का पंथी नृत्य प्रचलित है।इस तरह अपने पूर्वजों की रीति नीति रिवाज आज भी देखने सुनने को मिलती है।युवा वर्ग इस रीति नीति रिवाज को उपर उठने की ललक और आधुनिक युग में प्रवेश से भूलते हुये पारंपरिक रिवाजों रीति नीति से दूर होते दिख रहे हैं। कोसीर रायगढ जिले का सबसे बडा गांव है जो रायगढ जिले के अंतिम छोर पश्चिम में बसा है यही नहीं कोसीर इतिहास की दृष्टि से पुरात्विक नगरी है यहां माॅ कौशलेश्वरी देवी की मंदिर है जिसका जिक्र रामायण में भी मिलता है।कोसीर गांव का रउताही  नाच मडाई मेला चर्चित है। आज भी कोसीर की मडाई मेला को देखने के लिये दूर दराज के लोग आते हैं। पूर्वजों की माने तो कोसीर का मडाई मेला का एक अलग पहचान रहा है।यहाॅ विभीन्न समुदाय के लोग निवासरत है जिसमें यादव समुदाय के लोग भी रहते हैं वर्तमान में अब गांव गांव में हाट बाजार हो रहे हैं जिससे छोटे छोटै गांव में मेला मडाई का आयोजन कर उत्सव मनाया जाता है इन्हीं सब नये परिवर्तनों से कोसीर की मडाई मेला में कमी दिखी है पर ग्रामीणों में मेले के आयोजन को सहेजकर रखने का भरपूर प्रयास भी किया है।राउत नाचा एक पारंपरिक नृत्य है जिसका एक अलग पहचान है। राउत नाचा छत्तीसगढ में यादवों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। भगवान श्री कृष्ण को पूर्वज मानने वाले राउतो का यह नृत्य गहिरा नाच के नाम से भी जाना जाता है।यह नृत्य शौर्य एवं वीरता का कलात्मक प्रदर्शन है।जब इन्द्र ने मूसलाधार बारिश कर गोकुलवासियों को जलमग्न करने का प्रयास किया परंतु कृष्ण ने अपनी कनिष्ट उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और बृजवासियों की रक्षा की।वह दिन खुशी और उत्साह का दिन रहा तब से उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। राउत नाच देव उठनी एकादशी से प्रारंभ होती है। देव उठनी के दिन यादव किसान के बैल गायों को सुराही बांधकर खुशी व्यक्त करता है और उसी दिन से अपनी पारंपरिक नृत्य गांव के घर घर घूमकर नाच गाकर दोहे द्वारा अपनी शौर्य दिखाता है। राउत नाच पारंपरिक नृत्य है इस नृत्य में यादव समाज विशेष भेष-भूषा पहनकर हाथ में सजी हुई लाठी लेकर टोली में गाते और नाचते हुये निकलते हैं।गांव में प्रत्येक गृहस्वामी के घर में नृत्य प्रदर्शन के पश्चात उनकी समृद्धि की कामना युक्त दोहा गाकर आशीर्वाद देते हैं। टिमकी ,मोहरी ,डफरा ,ढोलक ,ढोल ,निशान ,सिंग बाजा ,आदि इनके वाद्य यंत्र हैं। जब टोली अपने घर से निकलती है तो दोहे बोलते हुये निकलती है-जय मोहबायी मोहबा के ,अखरा के बीज बैताल के ,नौ सौ जोगनी पुरखा के ,भुंजवा में सोहाय हो। ऐसे कई दोहे अपने नृत्य में प्रस्तुत कर अपना शौर्य प्रदर्शन करते है।पैंसठ वर्षीय मामराय यादव से खास मुलाकात में मामराय यादव ने कहा -मोर जब गउना नई होय रहिस तब ले मैं अपन पुरखौती के ये नाचा ला नाचत आवत हवां ,अब हमन थक गेन हमर बेटा मन सम्भाले हावें। फेर आजकल के बाबू मन ये नृृत्य ला भुलत हावें जेला सहेजना चाही।ऐसे कहते हुये कई दोहे गाकर बताये भी जिसमें शौर्य और पीडा झलकी। जैसे -पवन बिना पानी ,चैखट बिना कपाट ,चारों खुरा मा हीरा जलत है धनी बिना अंधियार हो। अपने अनुभवों से परिचय कराये जब नृत्य करते है तो मन में उमंग रहती है अच्छा लगता है और कोसीर का रौताई मेला प्रसिद्ध है। वर्तमान में कुछ कंधों पर पारंपरिक नृत्य की जिम्मेदारी है जिसे सहेजना अति आवश्यक है। कोसीर के मडाई मेला को महोत्सव के रूप में मनाने की आवश्यकता है। इस वर्ष कोसीर मडाई मेला जनवरी से जनवरी तक रखा गया है औश्र नृत्य करने वाले प्रत्येक टोली को ग्राम पंचायत स्तर मे 1001 रूपये पुरस्कार स्वरूप प्रदान करने की घोषणा किया गया है। आनेवाले समय में गांव की मडाई मेला को नये रूप में सहेजने की आवश्यकता है। ब्लाक स्तर में भी प्राथमिकता की जरूरत नजर आती है जिससे राउत नाच की गरिमा बनी रहे और आनेवाली पीढी इसे न भूले। इस पारंपरिक नृत्य को नयी पहचान की आवश्यकता नजर आती है।

0  लक्ष्मी नारायण लहरे युवा साहित्यकार पत्रकार की कलम से