आजकल लोगों के चेहेरे खुश नजर ,आते नहीं !
बेघर हैं लोग इस छोटी सी उमर में
अनजान ,नादान बन कर जी रहे हैं
आँखों में ढेर -सारे सपनें हैं
पर वक्त के आगे खुद से बेगानें हैं
यूँ तो सफ़र जिंदगी की मज़बूरी बन गई है
पर ,हाथों में खंजर लिए जी रहे हैं
न जाने कब क्या हो जाये
यही सोंच कर मधुशाला जाते हैं
लौटते हुए घर
वो ! श्मशान पर नजर आते हैं
बहक गए हैं जमाने की रुसवाई से
तंग -कपडे में विज्ञापन आजमातें हैं
न जाने कौन सी अनाज खाते हैं
बदलते तस्वीर में ......
रंग भर कर
नीलाम करते हैं
वो .... साहेबजादे रुपये के लिए
अपनी ईमान को बेच जाते हैं
भला क्या कहें ?
भला हो क्या ....
लोगों को अमीर-गरीब की खाई से
जात-पात की लड़ाई से
भाई -भाई को लड़ाते हैं
ऐ.... मेरे अजीज दोस्तों
जिन्दगी की सफ़र में ....
पल -दो -पल पड़ोसी ही काम आते हैं ......
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल '
लोगों को अमीर-गरीब की खाई से
जवाब देंहटाएंजात-पात की लड़ाई से
भाई -भाई को लड़ाते हैं
ऐ.... मेरे अजीज दोस्तों
जिन्दगी की सफ़र में ....
पल -दो -पल पड़ोसी ही काम आते हैं ......
एकदम सच,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
hardik abhar ...
जवाब देंहटाएंBadi acchhi rachna.. Badhai..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ....
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