गुरुवार, 31 मार्च 2011
रविवार, 20 मार्च 2011
गाँव में होली के रंग ....
होली पर्व पर कोसीर की गलियों में ,घरों में ,चौपालों में रंग का सुरूर ......
कोसीर सरपंच नंदराम लहरे और मित्र गण
साहित्यकार ०१,नीलम आदित्य ,०२ ,तीरथ राम चन्द्रा,०३ ,लक्ष्मी नारायण लहरे
डा . अम्बेडकर चौक में अपने परिवार के साथ साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे जी
कोसीर सरपंच नंदराम लहरे और मित्र गण
साहित्यकार ०१,नीलम आदित्य ,०२ ,तीरथ राम चन्द्रा,०३ ,लक्ष्मी नारायण लहरे
लक्ष्मी नारायण लहरे ,और मित्र ....(छाया ) ..गोल्डी कुमार नव भारत पत्रकार ..............कोसीर
शनिवार, 19 मार्च 2011
शनिवार, 12 मार्च 2011
अखबार ....कतरन .....
ग्राम कोसीर के कलमकार ...
१.गोल्डी कुमार लहरे (नव भारत पत्रकार )
२.लक्ष्मी नारायण लहरे (साहित्यकार )
३.नीलकमल वैष्णव (साहित्यकार )
४.तीरथ राम चन्द्रा (वरिष्ठ साहित्यकार )
शुक्रवार, 11 मार्च 2011
मद मस्त मौला ..उस्ताद
मद मस्त मौला ..उस्ताद .......
सड़कों पर बेखौप
गलियों का राही
निकल पड़ा है
सुबह से
खबर नहीं है
बस चले जा रहा है .........
गुरुवार, 10 मार्च 2011
बुधवार, 9 मार्च 2011
”””””वो भोली गांवली”””’
कविता ””’
”””””वो भोली गांवली”””’
जलती हुई दीप बुझने को ब्याकुल है
लालिमा कुछ मद्धम सी पड़ गई है
आँखों में अँधेरा सा छाने लगा है
उनकी मीठी हंसी गुनगुनाने की आवाज
बंद कमरे में कुछ प्रश्न लिए
लांघना चाहती है कुछ बोलना चाहती है
संम्भावना ! एक नव स्वपन की मन में संजोये
अंधेरे को चीरते हुए , मन की ब्याकुलता को कहने की कोशिश में
मद्धम -मद्धम जल ही रही है
””””””””वो भोली गांवली ””””’सु -सुन्दर सखी
आँखों में जीवन की तरल कौंध , सपनों की भारहीनता लिए
बरसों से एक आशा भरे जीवन बंद कमरे में गुजार रही है
दूर से निहारती , अतीत से ख़ुशी तलाशती
अपनो के साथ भी षड्यंत्र भरी जीवन जी रही है
छोटी सी उम्र में बिखर गई सपने
फिर -भी एक अनगढ़ आशा लिए
नये तराने गुनगुना रही है
सांसों की धुकनी , आँखों की आंसू
अब भी बसंत की लम्हों को
संजोकर ”’साहिल ”” एक नया सबेरा ढूंढ़ रही है
मन में उपजे असंख्य सवालों की एक नई पहेली ढूंढ़ रही है
बंद कमरे में अपनी ब्याकुलता लिय
एक साथी -सहेली की तालाश लिए
मद भरी आँखों से आंसू बार -बार पोंछ रही है
वो भोली सी नन्ही परी
हर -पल , हर लम्हा
जीवन की परिभाषा ढूंढ़ रही है ”””’
00000लक्ष्मी नारायण लहरे ,युवा साहित्यकार पत्रकार
छत्तीसगढ़ लेखक संघ संयोजक -कोसीर ,सारंगढ़ जिला -रायगढ़ /छत्तीसगढ़
”””””वो भोली गांवली”””’
जलती हुई दीप बुझने को ब्याकुल है
लालिमा कुछ मद्धम सी पड़ गई है
आँखों में अँधेरा सा छाने लगा है
उनकी मीठी हंसी गुनगुनाने की आवाज
बंद कमरे में कुछ प्रश्न लिए
लांघना चाहती है कुछ बोलना चाहती है
संम्भावना ! एक नव स्वपन की मन में संजोये
अंधेरे को चीरते हुए , मन की ब्याकुलता को कहने की कोशिश में
मद्धम -मद्धम जल ही रही है
””””””””वो भोली गांवली ””””’सु -सुन्दर सखी
आँखों में जीवन की तरल कौंध , सपनों की भारहीनता लिए
बरसों से एक आशा भरे जीवन बंद कमरे में गुजार रही है
दूर से निहारती , अतीत से ख़ुशी तलाशती
अपनो के साथ भी षड्यंत्र भरी जीवन जी रही है
छोटी सी उम्र में बिखर गई सपने
फिर -भी एक अनगढ़ आशा लिए
नये तराने गुनगुना रही है
सांसों की धुकनी , आँखों की आंसू
अब भी बसंत की लम्हों को
संजोकर ”’साहिल ”” एक नया सबेरा ढूंढ़ रही है
मन में उपजे असंख्य सवालों की एक नई पहेली ढूंढ़ रही है
बंद कमरे में अपनी ब्याकुलता लिय
एक साथी -सहेली की तालाश लिए
मद भरी आँखों से आंसू बार -बार पोंछ रही है
वो भोली सी नन्ही परी
हर -पल , हर लम्हा
जीवन की परिभाषा ढूंढ़ रही है ”””’
00000लक्ष्मी नारायण लहरे ,युवा साहित्यकार पत्रकार
छत्तीसगढ़ लेखक संघ संयोजक -कोसीर ,सारंगढ़ जिला -रायगढ़ /छत्तीसगढ़
मंगलवार, 8 मार्च 2011
खबर से बे -खबर ...................
बे -खबर ,बे -घर
छत की चिंता कहाँ
जहाँ पर बैठे
वहीँ घर
भूखा -प्यासा
जीवन
जी रहें हैं
जीवन की नई दर्द से
अपनी जीवन जी रहें हैं
लक्ष्मी नारायण लहरे
नई किरण की तलाश
कविता .....
नई किरण की तलाश
नई किरण की आस लगाए अँधेरे में हम ,चुप -चाप बैठे हैं
नई सुबह की एक आस लगाए ,इस संसार में खोये हैं
गांधी की भूमि ,गौतम की राहें ,अब भी मुझे याद आते हैं
कैसे कहूँ भला मैं ,किस -किस को समझाउं मैं
क्योंकि मैं बहुत अभी छोटा हूँ
सुभाष की वाणी भगत की कहानी सुनी है
मुझे नई किरण की तलाश है
अहिंसा और प्रेम की लड़ाई लड़नी है
लक्ष्मी नारायण लहरे पत्रकार
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