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शनिवार, 16 जुलाई 2011

इन आँखों में अब नींद कहाँ .....

इन आँखों में अब नींद कहाँ 
इन आँखों में अब चैन कहाँ 
अपलक ,एकटक 
राह तुम्हारी ताकती है 
सुबह -शाम 
पल -पल ,हर पल 
बस तुम्हारे ही 
आने की 
खबर .......
 मन में संजोये .......
राह तुम्हारी ताकती है 
सुबह से शाम होती है ....
सावन का वो महिना ...
बिताये थे हम साथ -साथ 
वो बीते पल याद आते हैं 
प्रिये ......
गांवली,सांवली ....
रिम -झिम बारिस की बूंदें 
मन को बहुत तड़पाते हैं 
लौट आवो .....
तुम्हें ...ये नयन अब भी याद करते हैं ....
क्या ? तुम्हे मेरी चिट्ठी नहीं मिल पाई 
या अब भी नाराज हो 
लौट आवो .....

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
कोसीर ...ग्रामीण मित्र !

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